मां दुर्गा की कहानी | know about hindu goddess maa durga
कैलाश पर्वत के ध्यानी की अर्धांगिनी मां सती ही दूसरे जन्म में पार्वती के रूप में विख्या हुई उन्हें ही ही शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री आदि नामों से जोड़कर देखा जाता है। जिन्हें दुर्गा, जगदम्बा, अम्बे, शेरांवाली आदि कहा जाता है वे सदाशिव की अर्धांगिनी है।
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।
कैलाश पर्वत के ध्यानी की अर्धांगिनी मां सती ही दूसरे जन्म में पार्वती के रूप में विख्या हुई उन्हें ही ही शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री आदि नामों से जोड़कर देखा जाता है। जिन्हें दुर्गा, जगदम्बा, अम्बे, शेरांवाली आदि कहा जाता है वे सदाशिव की अर्धांगिनी है।
माता की कथा :
आदि सतयुग के राजा दक्ष की पुत्री सती माता को शक्ति कहा जाता है। शिव के कारण उनका नाम शक्ति हो गया। हालांकि उनका असली नाम दाक्षायनी था। यज्ञ कुंड में कुदकर आत्मदाह करने के कारण भी उन्हें सती कहा जाता है। बाद में उन्हें पार्वती के रूप में जन्म लिया। पार्वती नाम इसलिए पड़ा की वह पर्वतराज अर्थात् पर्वतों के राजा की पुत्र थी। राजकुमारी थी।
पिता की अनिच्छा से उन्होंने हिमालय के इलाके में ही रहने वाले योगी शिव से विवाह कर लिया।
एक यज्ञ में जब दक्ष ने सती और शिव को न्यौता नहीं दिया, फिर भी माता सती शिव के मना करने के बावजूद अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई, लेकिन दक्ष ने शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें कही। सती को यह सब बरदाश्त नहीं हुआ और वहीं यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए।
यह खबर सुनते ही शिव ने अपने सेनापति वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट दिया। इसके बाद दुखी होकर सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर शिव क्रोधित हो धरती पर घूमते रहे। इस दौरान जहां-जहां सती के शरीर के अंग या आभूषण गिरे वहां बाद में शक्तिपीठ निर्मित किए गए। जहां पर जो अंग या आभूषण गिरा उस शक्तिपीठ का नाम वह हो गया। इसका यह मतलब नहीं कि अनेक माताएं हो गई।
माता पर्वती ने ही शुंभ-निशुंभ, महिषासुर आदि राक्षसों का वध किया था।
माता का रूप :
मां के एक हाथ में तलवार और दूसरे में कमल का फूल है। पितांबर वस्त्र, सिर पर मुकुट, मस्तक पर श्वेत रंग का अर्थचंद्र तिलक और गले में मणियों-मोतियों का हार हैं। शेर हमेशा माता के साथ रहता है।
माता की प्रार्थना :
जो दिल से पुकार निकले वही प्रार्थना। न मंत्र, न तंत्र और न ही पूजा-पाठ। प्रार्थना ही सत्य है। मां की प्रार्थना या स्तुति के पुराणों में कई श्लोक दिए गए है।
माता का तीर्थ :
शिव का धाम कैलाश पर्वत है वहीं मानसरोवर के समीप माता का धाम है। जहां दक्षायनी माता का मंदिर बना है। वहीं पर मां साक्षात विराजमान है।
नवरात्रि :
वर्ष में दो बार नवरात्रि उत्सव का आयोजन होता है। पहले को चैत्र नवरात्रि और दूसरे को आश्विन माह की शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। इस तरह पूरे वर्ष में 18 दिन ही दुर्गा के होते हैं जिसमें से शारदीय नवरात्रि के नौ दिन ही उत्सव मनाया जाता है, जिसे दुर्गोत्सव कहा जाता है। माना जाता है कि चैत्र नवरात्रि शैव तांत्रिकों के लिए होती है। इसके अंतर्गत तांत्रिक अनुष्ठान और कठिन साधनाएं की जाती है तथा दूसी शारदीय नवरात्रि सात्विक लोगों के लिए होती है जो सिर्फ मां की भक्ति तथा उत्सव हेतु है।
नौ दुर्गा के नौ मंत्र :-
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:।'
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:।'
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नम:।'
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नम:।'
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमातायै नम:।'
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायनायै नम:।'
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:।'
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:।'
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्यै नम:।'
नवरात्रि व्रत :
नवरात्रि में पूरे नौ दिनों के लिए शराब, मांस और सहवास के साथ की अन्न का त्याग कर दिया जाता है। उक्त नौ दिनों में यदि कोई व्यक्ति किसी भी तरह से माता का जाने या अंजाने अपमान करता है तो उसे कड़ी सजा भुगतना होती है। कई लोगों को गरबा उत्सव के नाम पर डिस्को और फिल्मी गीतों पर नाचते देखा गया है। यह माता का घोर अपमान ही है।
नवदुर्गा रहस्य :
ये नवदुर्गा हैं- 1.शैलपुत्री 2.ब्रह्मचारिणी 3.चंद्रघंटा 4.कुष्मांडा 5.स्कंदमाता 6.कात्यायनी 7.कालरात्रि 8.महागौरी 9.सिद्धिदात्री। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण पार्वती माता को शैलपुत्री भी कहा जाता है। ब्रह्मचारिणी अर्थात जब उन्होंने तपश्चर्या द्वारा शिव को पाया था। चंद्रघंटा अर्थात जिनके मस्तक पर चंद्र के आकार का तिलक है। ब्रह्मांड को उत्पन्न करने की शक्ति प्राप्त करने के बाद उन्हें कुष्मांडा कहा जाने लगा। उदर से अंड तक वे अपने भीतर ब्रह्मांड को समेटे हुए हैं, इसीलिए कुष्मांडा कहलाती हैं। कुछ लोगों अनुसार कुष्मांडा नाम के एक समाज द्वारा पूजीत होने के कारण कुष्मांड कहलाई। पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है इसीलिए वे स्कंद की माता कहलाती हैं।
महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्होंने उनके यहां पुत्री रूप में जन्म लिया था इसीलिए वे कात्यायनी भी कहलाती हैं। उल्लेखनीय है जिस तरह विष्णु के अवतार होते हैं उसी तरह माता के भी। कात्यायन ऋषि की कन्या ने ही महिषासुर का वध किया था। उसका वध करने के बाद वे महिषसुर मर्दिनी कहलाई। कत नमक एक विख्यात महर्षि थे, उनके पुत्र कात्य हुए तथा इन्हीं कात्य के गोत्र में प्रसिद्ध ऋषि कात्यायन उत्पन्न हुए।
मां पार्वती देवी काल अर्थात हर तरह के संकट का नाश करने वाली हैं, इसीलिए कालरात्रि कहलाती हैं। माता का वर्ण पूर्णत: गौर अर्थात गौरा (श्वेत) है इसीलिए वे महागौरी कहलाती हैं। हालांकि कुछ पुराणों अनुसार कठोरतप करने के कारण जब उनका वर्ण काला पड़ गया तब शिव ने प्रसंन्न होकर इनके शरीर को गंगाजी के पवित्र जल से मलकर धोया तब वह विद्युत प्रभा के समान अत्यंत कांतिमान-गौर हो उठा। तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा। जो भक्त पूर्णत: उन्हीं के प्रति समर्पित रहता है उसे वे हर प्रकार की सिद्धि दे देती हैं इसीलिए उन्हें सिद्धिदात्री कहा जाता है।
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