भेड़िया और बकरी के बच्चे। बच्चों के लिए परी कथाओं की कहानी
दोस्तों आइये आज पढ़ते है भेड़िया और बकरी के बच्चे की परी कथाओं वाली कहानी।
एक जंगल के किनारे एक बूढ़ी बकरी ने अपना घर बना रखा था। उसके सात बच्चे थे। सातों मेमनों के साथ वह आराम से अपने दिन गुज़ार रही थी। बकरी बड़ी मेहनती और काम-काजी थी । काम तो उसे बहुत करना ही पड़ता था, क्योंकि वह सात बच्चों की मां थी। सातों छोटे-छोटे बच्चों को वह अपने घर में बन्द करके जाती थी।
बकरी को हर रोज़ अपना दूध बेचने के लिए जाना पड़ता था। बदले में जो दो-चार पैसे उसे मिल जाते थे, उनसे वह अपने बच्चों के लिए खाने-पीने की चीजें और कपड़े वगैरह खरीदती थी। उसका घर बहत सुन्दर था। उसमें हर तरह की आराम की चीजें थीं । मेमने दिन-भर खूब खेलते थे । बकरी जाने से पहले उन सबको गिनकर घर में बन्द कर देती थी। बाहर का दरवाजा भी जाने से पहले उनसे कहकर अन्दर से बन्द करवा देती थी।
इस तरह सब कुछ बड़े मज़े से चल रहा था। अचानक उनके लिए एक मुसीबत पैदा हो गई। पहाड़ पर से कोई बहुत ही चालाक और खूंखार भेड़िया उधर आ निकला। वह उस मकान का चक्कर लगाने लगा। पास आने की उसकी हिम्मत नहीं होती थी, क्योंकि वह बूढ़ी बकरी से डरता था।
अब जब बूढी बकरी अपना दूध बेचने के लिए जाने लगी तो उसे अपने बच्चों की चिन्ता हुई । वह उन्हें अपने साथ नहीं ले जा सकती थी। इसलिए उसने सबसे बड़े मेमने को अपने पास बुलाया और उससे कहा, "देखो बेटा, तुम सबसे बड़े हो। तुम्हारे सभी भाई-बहिन तुमसे छोटे हैं । तुम ज़रा होशियारी से रहना । अन्दर से दरवाजा बन्द कर लेना । जब तक मैं न आ जाऊं, तब तक दरवाज़ा मत खोलना । वह भेड़िया बड़ा चालाक है । मेरे जाने के बाद वह तुम लोगों को खाने के लिए यहां आएगा और घर में घुसने की कोशिश करेगा । तुम किसी भी हालत में दरवाजा मत खोलना।"
बड़ा मेमना 'मैं-मैं' करके बोला, "ठीक है, मां, तुम किसी तरह की फिक्र मत करो। मुझे उस चालाक भेड़िये के बारे में पता है। जब तक तुम नहीं आओगी, मैं दरवाज़ा नहीं खोलूँगा ।"
बूढी बकरी बोली, "ठीक है, तुम ऐसा ही करना ।लेकिन याद रखो, वह भेड़िया बड़ा चालाक है। वह तुमसे दरवाजा खुलवाने के लिए कई तरह के बहाने बनाएगा। हो सकता है, वह यहां आकर दरवाजे के पीछे से मेरी बोली की नकल करे और तुमको धोखा देने की कोशिश करे लेकिन तुम उसके बहकावे में मत अना। वह कितनी ही कोशिश करे लेकिन अपनी मोटी आवाज़ और काले पैर छिपा नहीं सकेगा। तुम उसे पहचान लेना और उसकी चाल में मत आना । वरना, वह अन्दर घुसकर तुममें से एक को भी जिन्दा नहीं छोड़ेगा और सबको खा जाएगा।" यह कहकर बूढ़ी बकरी वहां से रवाना हो गई । बड़े मेमने ने भीतर से दरवाज़ा बन्द कर लिया। फिर सब बच्चे खिड़की में इकट्ठे होकर हाथ हिला-हिलाकर अपनी मां को विदा करने लगे।
बूढ़ा भेड़िया एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठा हुआ था और वहां से सब कुछ देख रहा था । बकरी के जाने के थोड़ी ही देर बाद वह दरवाजे पर जा पहुंचा। बच्चों को खाने के लिए उसकी लार टपकने लगी। उसने अपनी मोटी और भद्दी आवाज़ को छिपाते हुए बड़े आहिस्ता से दरवाजा खटखटाया और कहा, "खोलो बच्चो, दरवाज़ा खोलो। मैं आ गई । अपनी मां से डरने की तुम्हें कोई ज़रूरत नहीं है । तुम दरवाज़ा खोल दो। मैं तुम्हारे लिए बहुत अच्छी-अच्छी मिठाइयां लाई हूं।"
बकरी के बच्चों ने समझा कि मां आ गई है इसलिए वे सब उससे मिलने के लिए दरवाज़े की तरफ दौड़े। बड़ा मेमना उनसे ज्यादा समझदार था। वह किसी भी हालत में दरवाज़ा खोलने के लिए राजी नहीं हो रहा था। लेकिन सबसे छोटा बच्चा बहुत देर तक अपनी मां से अलग नहीं रह सकता था। उसने ज़िद करके अपने बड़े भाई से कहा, "दरवाज़ा खोल दो न ! बाहर मां खड़ी आवाज़ दे रही है।"
लेकिन बडे मेमने ने दरवाजा नहीं खोला । भेडिये की आवाज सुनकर वह बोला, "तुम मां नहीं हो । मेरी मां तो सामान लाने के लिए बाज़ार गई हुई है । भेड़िये भाई, हम लोगों ने तुम्हें पहचान लिया है ! तुम यहां से चले जाओ।"
भेड़िया निराश होकर वहां से लौट आया। लेकिन अभी उसने हार नहीं मानी थी। बच्चों को खाने के लिए उसका मन ललचा रहा था। अचानक उसे एक चाल सूझी और वह दौडता हआ शहर में एक दवाई वाले के पास पहुंचा और अपनी आवाज़ मीठी करने के लिए उससे कुछ मीठी गोलियां मांगी।
दवाई वाले ने उसे अपने पास की सारी मीठी गोलियां दे दीं। भेड़िया गोलियां खाकर, गुर्राकर बोला, "ये कैसी गोलियां हैं !
इनसे तो मेरी आवाज़ मीठी हुई ही नहीं । जल्दी से कोई ऐसी दवाई दो, जिससे मेरी आवाज़ मीठी हो जाए । वरना मैं तुम्हें खा जाऊंगा।"
दवाई वाला डर गया लेकिन उसके पास आवाज़ को मीठी बनाने की कोई दवाई नहीं थी। उसने भेडिये को बहकाने के लिए उसे बहुत-सी खडिया-मिट्टी खाने को दे दी। भेड़िये को देर हो रही थी, इसलिए वह जल्दी-जल्दी खड़िया खाकर दौड़ता हुआ फिर से बकरी के घर पर जा पहुंचा। खड़िया खाने से उसकी आवाज़ कुछ साफ हो गई थी। उसने दरवाजा खटखटाया और कहा, "खोलो बच्चो, खोलो ! मैं आ गई। मैं तुम्हारे लिए बहत अच्छी-अच्छी चीजें और कपड़े लाई हूं।" यह कहकर वह दो पंजे दरवाजे पर टिकाकर खड़ा हो गया और सूराख में से देखने लगा कि देखें बच्चे क्या करते हैं।
बकरी के बच्चे बहत डरे हए थे। उन्होंने जब दरवाजे पर आवाज़ सुनी तो वे भी चुपचाप सुराख में से झांकने लगे। उन्हें दरवाजे पर दो बड़े-बड़े काले पंजे दिखाई दिए। वे लोग चिल्लाए, "अरे यह तो वही भेड़िया है, भेड़िया ! देखो, इसके काले-काले पंजे दिखाई दे रहे हैं।"
बड़े मेमने ने अन्दर से चिल्लाकर कहा, "भाग जा भेड़िये, भाग जा! दरवाज़ा नहीं खुलेगा।" यह सुनकर भेड़िया फिर अपना-सा मुंह लेकर वहां से लौट आया।
कुछ दूर जाकर भेड़िये ने सोचा, ये बच्चे बड़े चालाक मालूम होते हैं। मुझे कोई और चाल सोचनी पड़ेगी । मुझे जल्दी ही कुछ करना चाहिए वरना फिर मौका हाथ से निकल जाएगा और बकरी वापस लौट आएगी। वह दौड़ता हआ एक नानबाई के यहां पहुंचा । नानबाई आटा सानकर रोटी बनाने की तैयारी कर रहा था। भेड़िये ने कहा, "भैया, मेरे पंजे जल गए हैं। मुझे थोड़ा आटा दे दो।"
नानबाई ने उसको आटा दे दिया। इस आटे को उसने अच्छी तरह से अपने पंजों पर मल लिया। आटे में सनने के कारण अब उसके पंजे सफेद-से हो गए थे। वह फिर से दौड़ता हआ बकरी के घर जा पहुंचा और दरवाज़ा खटखटाया । बकरी के बच्चे ने इस बार जब सूराख से देखा तो उन्हें भेड़िये के काले पंजे नहीं दिखाई दिए। भेडिया इस बार चालाकी करके सूराख के सामने आटे में सने हए पंजे रखे हुए था। बकरी के बच्चों ने समझा कि इस बार सचमुच मां आ गई, और उन्होंने तुरन्त दरवाज़ा खोल दिया।
दरवाजे के खुलते ही भेड़िया चीखता हुआ घर में घुस गया। बच्चे डरकर इधर-उधर भागे, लेकिन भेड़िये ने दौड़-दौड़कर एक-एक को पकड़ा और सीधे अपने गले के नीचे उतार लिया। एक-एक करके वह छः बच्चों को निगल गया। लेकिन सातवां और सबसे छोटा बच्चा जान बचाकर एक डिब्बे में छिप गया । भेड़िये ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया। अब उसका पेट भर गया था। इसके अलावा, वह इधर-उधर की भाग-दौड़ से बहुत थक भी गया था। वह घर से बाहर आया । कुछ दूर एक झाड़ी के पास पहुँच कर उसकी छाया में लेटकर वह आराम करने लगा। थीड़ी ही देर में उसे गहरी नींद आ गई।
इतने में उधर बकरी लौटकर अपने घर आई । दरवाजा खुला देखकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। मारे डर के उसका दिल धड़कने लगा। कमरे में घुसते ही उसे मालूम हो गया कि कोई दुर्घटना घटी है । उसने ज़ोर-ज़ोर से अपने बच्चों को आवाज़ दी। लेकिन बच्चे वहां होते तब तो बोलते । जब उसने सबसे छोटे बच्चे का नाम लेकर पुकारा तो वह मिमियाता हुआ डिब्बे से बाहर निकल आया। बाहर आते ही वह अपनी मां से चिपट गया और पूछने लगा, "मां, मां, वह भेड़िया कहां गया? वह मेरे सारे भाई-बहनों को खा गया !"
बूढ़ी बकरी ने छोटे बच्चे को अपने गले से लगा लिया। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे । वह बहुत दुःखी थी। अब घर में बैठने को उसका मन नहीं हो रहा था । वह एक शाल ओढ़कर और छोटे बच्चे को साथ लेकर घर से बाहर निकल गई और इधर-उधर घूमने लगी।
घूमते-घूमते वे दोनों उस जगह जा पहुंचे जहां भेड़िया झाड़ी के नीचे लेटा आराम कर रहा था। वह बकरी के छः बच्चों को निगलकर बड़ा खुश मालूम हो रहा था और गहरी नींद में सोया पड़ा था।
उसको इस तरह सोया हुआ देखकर बकरी को बड़ा गुस्सा आया। वह उसे सजा देने के उपाय सोचने लगी। उसने ज़रा आगे बढ़कर भेड़िये के पेट को ध्यान से देखा । उसे लगा कि अन्दर कोई हिल-डुल रहा है। उसे यह समझते देर न लगी कि भेड़िये ने जल्दबाजी में बच्चों को सीधा उठाकर अपने गले से नीचे उतार लिया था। बकरी को लगा कि बच्चे अब भी भेड़िये के पेट में उछल-कूद मचा रहे हैं।
बूढ़ी बकरी दौड़ती हुई फिर से अपनी कुटिया में पहुंची और वहां से एक कैंची और सुई-धागा ले आई। फिर उसने आहिस्ता-आहिस्ता कैंची चलाकर भेड़िये के पेट में एक बड़ा-सा छेद कर दिया। छेद के होते ही उसमें से पहले बड़ा मेमना निकला, फिर उसके बाद उससे छोटा-इस तरह एक-एक करके सभी मेमने उछलते हुए बाहर निकल आए । बाहर आकर वे लोग अपनी मां के आसपास उछल-कूद मचाने लगे।
बूढ़ी बकरी ने फुसफुसाते हुए कहा, "चुप रहो, चुप रहो। धीरे बोलो। भेड़िया जाग जाएगा तो सारा खेल खराब हो जाएगा।"
इसके बाद बकरी ने अपने बच्चों को नाले के किनारे से बड़े-बड़े पत्थर उठा लाने के लिए कहा। बच्चे दौड़ते हए गए और पत्थर उठा लाए। इन पत्थरों को बकरी ने बड़ी सफाई से भेड़िये के पेट में रखा और फिर धीरे-धीरे धागे से सीते हए छेद बन्द कर दिया। भेड़िया इतनी गहरी नींद में सोया हुआ था कि उसे इस बात का पता ही नहीं चला। इसके बाद बकरी अपने बच्चों के साथ दौड़ लगाती हुई सीधी अपनी कुटिया में भाग आई।
कुछ देर बाद भेड़िये की नींद खुली। वह जंभाई लेता हुआ उठ खड़ा हुआ। उसे अपना पेट कुछ भारी-भारी-सा लगा। उसने अपने पेट पर हाथ फेरते हए सोचा, "आज मैंने कुछ ज्यादा खाना खा लिया है। छह मेमने काफी होते हैं !"
जब वह मस्ती से चलता हआ आगे बढ़ा तो उसके पेट में पत्थर खड़खड़ाने लगे। उसने सोचा, पेट में कोई गडबड हो गई है । वह जल्दी-जल्दी कदम रखता हुआ नाले के किनारे पहुंचा। उसका जी घबरा रहा था उसे प्यास भी लगी हुई थी। जब वह झुककर नाले में पानी पीने की कोशिश करने लगा तो उससे अपना वजन संभालते नहीं बना। पेट में पड़े पत्थरों के भार के कारण वह मुंह के बल लुढकता हआ पानी में जा गिरा। उसने पानी में से निकलने के लिए बहुत हाथ-पैर मारे, लेकिन भला वह पानी में से निकल ही कैसे सकता था ! उसके पेट में पत्थरों का भार था । वह पानी में गहरा डूबता चला गया और फिर कभी पानी के ऊपर नहीं आ सका।
बकरी अपने सातों बच्चों के साथ फिर आराम से रहने लगी।
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